डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी मनाई जाती है। जो कि बुधवार ( 6 जनवरी) को है। शास्त्रों के अनुसार, द्वापर युग में इसी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था। इस दिन देवी रुक्मिणी की पूजा विशेष रूप से की जाती है। माना जाता है कि रुक्मिणी अष्टमी पर श्री कृष्ण के साथ देवी रुक्मिणी की पूजा करने से आर्थिक समस्याओं से निजात मिलती है और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। बता दें कि रूक्मिणी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।
रूक्मिणी जन्म के संदर्भ पद्म पुराण एक अन्य कथा का वर्णन मिलता है। इस पुराण के अनुसार देवी रूक्मिणी पूर्व जन्म एक ब्राह्मणी थी। युवावस्था में ही इन्हें विधवा होना पड़ा। इसके बाद यह भगवान विष्णु की पूजा आराधना में समय बिताने लगी। निरन्तर भगवान विष्णु की भक्ति से इन्हें अगले जन्म में भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण की पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और यह लक्ष्मी तुल्य बन गईं। आइए जानते हैं रुक्मिणी अष्टमी पर की जाने वाली पूजा के बारे में…
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ऐसे करें पूजा की शुरुआत
– सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
– इसके बाद एक पात्र में श्रीकृष्ण और रुकमणी देवी की प्रतिमा को रखकर दक्षिणावर्ती शंख में स्वच्छ जल भरकर दोनों का जलाभिषेक करें।
– अब केसर मिश्रित दूध से दुग्धाभिषेक करें।
– श्रीकृष्ण और रुकमणी देवी के चरण स्वच्छ जल से धोएं।
– पैर धोने के जल में फूलों की पंखुड़ियां डालें।
– प्रतिमा का स्नान करवाते वक्त श्रीकृष्ण शरणम मम: या कृं कृष्णाय नम: का जाप करते रहें।
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देवी रुकमणी और श्रीकृष्ण की पूजा
– अब पूजा शुरू करने से पहले श्री गणेश को विराजित करें, बता दें कि हिन्दू धर्म में श्री गणेश को प्रथम पूज्य कहा जाता है। यानी कि किसी भी – – शुभ कार्य या पूजा से पहले उनकी उपासना की जाती है।
– इसके बाद एक पाट पर पीला, लाल या नारंगी वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी की प्रतिमा को स्थापित करें।
– दोनों की कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेंहदी, चंदन, सुगंधित फूल, इत्र आदि से पूजा करें। भगवान श्रीकृष्ण को पीला और देवी रुक्मिणी को लाल वस्त्र समर्पित करें।
– श्रीकृष्ण और रुकमणी देवी को पंचामृत, तुलसीदल, पंचमेवा, ऋतुफल और मिष्ठान्न का भोग लगाए।
– दोनों को खीर का भोग विशेष रूप से लगाएं और भोग की सभी सामग्री में तुलसी दल डालें।
– शुद्ध घी का दीपक जलाएं और आरती उतारें।
– शाम को फिर से इसी विधि-विधान से श्रीकृष्ण और रुकमणी देवी का पूजन करें।
– अगले दिन नवमी तिथि को ब्राह्मणभोज का आयोजन कर व्रत का पारण करें।